Monday, June 11, 2018

Say No To Tobacco by Cartoon Watch Magazine of India to aware people.



https://youtu.be/h9Nd7z8l14M

Result of National Level Cartoon Competition organised by Cartoon Watch Magazine with CECB on World Environment Day 5th June 2018


क्या कभी कोई पाॅवर से बोर होता है ? क्या कभी कोई कहता है कि अब बहुत हो गया अब किसी और को टिकट दे दो ?

क्या कभी कोई पाॅवर से बोर होता है ? क्या कभी कोई कहता है कि अब बहुत हो गया अब किसी और को टिकट दे दो ?

-त्रयम्बक शर्मा

छ.ग. की वर्तमान सरकार को 15 बरस हो जायेंगे और इसी साल चुनाव भी होंगे. अनेक सर्वेक्षण में यह बात आ रही है कि सरकार के मंत्रियों से जनता नाराज है पर सरकार से नहीं. अनेक विधायकों से जनता नाराज है पर सरकार से नहीं. कई विधायक और मंत्री ऐसे हैं जिन्हें 15 साल हो जायेंगे. वहीं कुछ विधायक और सांसद ऐसे भी हैं जिन्हें लगातार 5 से 6 बार जनता चुनते आ रही है. वे तब तक लड़ते रहेंगे जब तक हार नहीं जायेंगे. हार ही उन्हें हटा सकती है. हारकर भी जीतने वाले राजनीति में मिल जायेंगे जैसे अरूण जेटली और स्मृति ईरानी. जनता ने उन्हें हरा दिया पर वे मंत्री बनकर उसी जनता को चिढ़ाते दिख रहे हैं जिन्होंने उन्हें हराया. यह लोकतंत्र का मजाक नहीं तो और क्या है. लगातार 10 साल तक प्रधानमंत्री रहने वाले मनमोहन सिंह ने तो चुनाव लड़ने की जहमत नहीं उठाई. फिर भी हम अपने आपको विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र मानते हैं. आप कोई भी नियम बनाइये हम इतने कुशल हैं कि उससे न सिर्फ बचने के रास्ते खोज लेंगे अपितु उस नियम का फायदा कैसे उठाया जाये यह भी सीख लेंगे. इसलिये यदि हमने राजनीति में उम्र का बंधन रखा तो भी मुश्किल होगी और नहीं रखा है तो भी. ये लोग कभी कभी अंतर्रात्मा की आवाज की बात करते हैं तो सुनकर बड़ा अच्छा लगता है लेकिन क्या ये सचमुच कभी उसकी आवाज सुन भी पाते हैं ? राजनीति का चक्र ही ऐसा है कि चमड़ी मोटी रखनी पड़ती है और अंतर्रात्मा की आवाज उस चमड़ी को पार नहीं कर पाती. राजनीति आसान राह नहीं है और सबके बस की बात भी नहीं है. एक राजनैतिक गुरू के अनुसार वे राजनीति में नये आने वाले लड़को को कहते हैं कि इस लाईन में तभी आओ जब रोज कम से कम दो बार अपमान सह सको और दस पंद्रह लोगों की मुफ्त सलाह मुस्कुराते हुये सुन सको. अर्थात आपकी चमड़ी इतनी मोटी हो कि अपमान अंदर ना जा सके और अंतर्रात्मा की आवाज बाहर ना आ सके. यह राजनीतिक बुद्धत्व है.
भगवान बुद्ध राजा थे और उन्होंने ऐश्वर्य को करीब से देखा भोगा और उसकी व्यर्थता को देख सके और विरक्त हो गये. अभी व्हाट्सअप में गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का संदेश चल रहा है जिसमें वे जीवन के बारे में बता रहे हैं कि वे पूरा जीवन एक व्यर्थ की दौड़ में दौड़ते रहे और आज उन्हें समझ में आ रहा है कि वह भीड़ अब नदारद है. जीवन की सच्चाई सामने है. वेयटिंग फाॅर डेथ की श्रृंखला में हमारे प्रिय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी अनेक वर्षाें से बिस्तर पर हैं. उसी तरह जार्ज फर्नाडिस ओर जसवंत सिंह भी अंग्रेजी में वेजिटेबल होकर जी रहे हैं. वहीं दबंग पुलिस वाले हिमांशु राय अपनी ही पिस्तौल से अपनी इहलीला समाप्त कर लेते हैं क्योंकि वे कैंसर के कारण धीमी मौत की प्रतीक्षा नहीं कर सकते. कभी कभी लगता है कोई तो राजनेता ऐसा निकले जो कहे कि दो बार मंत्री बन गया, तीन बार बन गया, अगली पीढ़ी के लिये जगह खाली कर दूं. राजनीति में केयूर भूषण जैसे व्यक्ति मुश्किल से मिलते हैं जिनका अभी हाल ही में निधन हुआ. वे सांसद रहे पर वृ़द्धावस्था में भी सायकल चलाते रहे. वे गांधी वादी माने गये. विद्याचरण शुक्ल पकी उम्र में नक्सलियों की गोलियों से शहीद हुये लेकिन आॅन द स्पाॅट नहीं. कुछ दिन उन्होंने मृत्यु से दो दो हाथ किये. मध्यप्रदेश में वृ़द्ध दिग्विजय सिंह ने नर्मदा यात्रा निकाली वह भी अपनी नई पत्नी को लेकर और सफलता अर्जित की. कमलनाथ जैसे वृद्ध को कांग्रेस म.प्र. का अध्यक्ष बनाती है, और कमलनाथ खुशी खुशी जीप पर चढ़ जाते हैं. यह नहीं कहते कि हम संरक्षक रहेंगे किसी 50-55 वाले को बना दो. लालकृष्ण आडवानी अभी भी युवाओं पर भारी हैं, राजनीति में लोगों को लचीली रीढ़ रखनी पड़ती है पर उनकी रीढ़ अभी भी सीधी है. मौका मिले तो वे 2019 में प्रधानमंत्री बनने को तैयार हैं. मोतीलाल वोरा वयोवृद्ध हैं पर अभी भी वे अपने पोते की उम्र के राहुल के पीछे डगमगाते डगमगाते भागते दिखते हैं. राजनीतिक लोगों का अध्यात्म अजीब है. उनकी चेष्टा नमन करने लायक है. कई वर्षों से व्हील चेयर पर बैठे जोगी का विल पाॅवर आश्चर्यजनक है. वे स्वयं कभी रिटायरमेंट की बात करते थे पर उन्होंने तो नई पार्टी ही बना डाली. हमारा यह कहना कदापि नहीं है कि वृद्ध होने पर आदमी को मंदिर की शरण में चला जाना चाहिये या घर बैठ जाना चाहिये. हाल ही में अमिताभ बच्चन की फिल्म 102 नाॅट आउट रिलीज हुइ है. इस फिल्म में अमिताभ 102 साल के हैं और चीनी व्यक्ति के 128 साल के हमारा इतना ही सोचना है कि क्या उनके जेहन में कभी नहीं आता कि अब बोर हो गये. कुछ और करें. जगह खाली करें. त्याग करें. क्या यह जिम्मा सिर्फ मृत्यु और हार ही निभायेगी ?